आखिर एक अनप्लैंड ट्रिप कितना अनप्लैंड हो सकता है?
मैं बताता हूं कितना 😂
तो मैकलोडगंज की एक सुहानी धूप भरी सुबह में मन हुआ की चलो त्रिउंड के मैजिक व्यू कैफे तक चढ़कर एक चाय मैगी खाकर शाम तक वापस चले आते है, थोड़ी ठंडी हवा का वहम था तो एक लेयर जैकेट अपने डे पैक में डाला। एक पानी की बोतल, अपना कैमरा, 2 फ्रूट केक और छाता ताकि बाय चांस बारिश हो गई तो ठीक रहेगा। मुझे पता है ऑलरेडी काफी प्लांड लग रहा होगा, लेकिन ऐसा नही है। 😂

मैं अपने मित्र (जो की हॉस्टल में ही मिला था) के साथ चल पड़ा। मैजिक व्यू 10 बजे सुबह पहुंच गया तो लगा की Triund अब कोनसा दूर है, चल लेते है, आने में तो वैसे भी आधा टाइम ही लगेगा (ओवरकॉन्फिडेंस सूंघ पा रहे हो? 🤣)

 

चल पड़े भाई, गानों की धुन और वक्त पर लौटने की धनक ने 12 बजे Triund पहुंचा दिया। कसम से क्या मौसम था, सामने मूनपीक की खूबसूरती के तो क्या ही कहने। यहां में सच में पिघल गया था 😍

 

यहां मेने अपने दोस्त से मसखरी में कहा, क्यों अरुण भाई, क्या लगता है और पास से कैसा लगता होगा ? अरुण भाई ठिठके और बोले यहां तो बढ़िया लग रहा है, पास से और बढ़िया लगेगा । मेरे अतिउत्तेजित चहरे को भांप कर मैगी परोसते हुए दुकान वाले चाचा बोले “स्नोलाइन भी 1 घंटा ही है यह से”

मां कसम यही में दूसरी बार ओवरकॉन्फिडेंस में आगया था 😂

 

“अरुण भाई देखो अगर स्नोलाइन जाकर आए तो 2 घंटे और सही, 2:30 बजे उतरना शुरू करेंगे वापस यहीं से और 5 बजे तो हॉस्टल” ये सब में सादे में बोल रहा था 😂😂
विज्ञान के अवकलन समाकलन के जोड़ अपने जीवन में इतनी तेजी से नही किए थे की ये कर रहा था 😂
खैर मैगी सुड्डक के चल दिए, ऊबड़ खाबड़ रास्ते से झूमते झामते कुदरत के नजारे लेते हुए भी मूनपीक के प्यार में पागल होते हुए सोच रहे थे की पास से कितना सुंदर लगेगा 😂
खैर हम 1:15 बजे स्नोलाइन पहुंचे ।

 

आए हाए नजारे आगए, शांति के अलावा स्नोलाइन इसलिए भी पसंद है की शाम में बैठ कर मूनपीक के चहेरे पर वो सुनहरी चुनर देखने को मिलती है, सूरज की किरणे अपने सुनहरे रंग की आखिरी आभा में उस पहाड़ को इस ढकती है जैसे किसी दुल्हन के चहरे का घूंघट 😍|

 

खैर, वहां पहुंचते ही अपने ये विचार दिमाग में दही की तरह फैल चुके थे। चाचा से एक गरम चाय ली। 2 मिनट तक उस पहाड़ को अपने अंदर झांकने दिया ( और क्या, इतना करीब से और भी अद्भुत था की अब मेरी क्या औकात की मैं उसमे झांकू?)
चुस्की लेते हुए चाचा से पूछा “टेंट है?” 🤔
“आखिरी बचा है”
अब अरुण भाई पहले भी ज्यादा शक की नजर से देख रहे थे 🙄
मैं बोलता उससे पहले से ही तपाक से बोले “2:30 बजे नीचे उतरना शुरू करना है?”
मेरे की अब जाने का मन था ही नही 🤭
मेने अरुण भाई के बजाय चाचा को जवाब दिया ” वो ऊपर वाली साइड में सनराइज फेसिंग करके लगा दो 2 लोग के लिए” 😂🤣
में और अरुण भाई जोर से हंसे। 😂
“तू ठंड से मरवाएगा आज” बोलकर अरुण भाई चाय सुडकने लगे।
“अब नया प्लान सुनो” मेने सीरियस होके बोलने की कोशिश की।
अरुण भाई का चेहरा देखने लायक था 😂
“अभी सनसेट देखेंगे, सुबह 6 बजे लाका ग्लेशियर चलेंगे, 11 बजे वहा से निकलेंगे और 3-4 बजे तक नीचे” 🤔
लगा अरुण भाई से उनकी आत्मा मांग ली 😂

मैं चुपचाप चाय सुडकने लगा 🤭

अब लग रहा था कुछ ज्यादा ही अनप्लैन्ड हो रहा है।

वो अलग बात है की कैसे इसी ट्रिप पर पजामा टीशर्ट पहने एक पतले जैकेट के सहारे इंद्रहार तक कर आए 😂🤣
आगे की अनप्लैंड कहानी कभी और 😂

हां ये पीछे लाका ग्लेशियर ही है और वो मूनपीक का साइड पोज ( मेरा भी 😂 😅 🙌)

 

 

2 comments
  1. मूनपीक और चंद्रहार…अद्भुत नाम साम्यता…रमणीक स्थल…शब्दाकाश में तैरती यात्रा की अनछुई अनुभूतियां….लाज़वाब अनप्लैंड ट्रीप स्टोरी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like