मैं अपने मित्र (जो की हॉस्टल में ही मिला था) के साथ चल पड़ा। मैजिक व्यू 10 बजे सुबह पहुंच गया तो लगा की Triund अब कोनसा दूर है, चल लेते है, आने में तो वैसे भी आधा टाइम ही लगेगा (ओवरकॉन्फिडेंस सूंघ पा रहे हो? )
चल पड़े भाई, गानों की धुन और वक्त पर लौटने की धनक ने 12 बजे Triund पहुंचा दिया। कसम से क्या मौसम था, सामने मूनपीक की खूबसूरती के तो क्या ही कहने। यहां में सच में पिघल गया था
मां कसम यही में दूसरी बार ओवरकॉन्फिडेंस में आगया था ।
आए हाए नजारे आगए, शांति के अलावा स्नोलाइन इसलिए भी पसंद है की शाम में बैठ कर मूनपीक के चहेरे पर वो सुनहरी चुनर देखने को मिलती है, सूरज की किरणे अपने सुनहरे रंग की आखिरी आभा में उस पहाड़ को इस ढकती है जैसे किसी दुल्हन के चहरे का घूंघट |
मैं चुपचाप चाय सुडकने लगा
अब लग रहा था कुछ ज्यादा ही अनप्लैन्ड हो रहा है।
हां ये पीछे लाका ग्लेशियर ही है और वो मूनपीक का साइड पोज ( मेरा भी )
2 comments
♥♥♥♥♥
मूनपीक और चंद्रहार…अद्भुत नाम साम्यता…रमणीक स्थल…शब्दाकाश में तैरती यात्रा की अनछुई अनुभूतियां….लाज़वाब अनप्लैंड ट्रीप स्टोरी